Wednesday, 11 October 2017

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

*एक कवि* नदी के किनारे खड़ा था !
तभी वहाँ से *एक लड़की* का *शव*
नदी में तैरता हुआ जा रहा था।
तो तभी *कवि ने उस शव* से पूछा ----
कौन हो तुम ओ सुकुमारी,
*बह रही नदियां के जल में ?*
कोई तो होगा तेरा अपना,
*मानव निर्मित इस भू-तल में !*
किस घर की तुम बेटी हो,
*किस क्यारी की कली हो तुम ?*
किसने तुमको छला है बोलो,
*क्यों दुनिया छोड़ चली हो तुम ?*
किसके नाम की मेंहदी बोलो,
*हांथों पर रची है तेरे ?*
बोलो किसके नाम की बिंदिया,
*मांथे पर लगी है तेरे ?*
लगती हो तुम राजकुमारी,
*या देव लोक से आई हो ?*
उपमा रहित ये रूप तुम्हारा,
*ये रूप कहाँ से लायी हो?*
..........
*दूसरा दृश्य----*
*कवि* की बातें सुनकर
*लड़की की आत्मा* बोलती है...
कविराज मुझ को क्षमा करो,
*गरीब पिता की बेटी हूं !*
इसलिये मृत मीन की भांती,
*जल धारा पर लेटी हुँ !*
रूप रंग और सुन्दरता ही,
*मेरी पहचान बताते है !*
कंगन, चूड़ी, बिंदी, मेंहदी,
*सुहागन मुझे बनाते है !*
पिता के सुख को सुख समझा,
*पिता के दुख में दुखी थी मैं !*
जीवन के इस तन्हा पथ पर,
*पति के संग चली थी मैं !*
पति को मेने दीपक समझा,
*उसकी लौ में जली थी मैं !*
माता-पिता का साथ छोड़
*उसके रंग में ढली थी मैं !*
पर वो निकला सौदागर,
*लगा दिया मेरा भी मोल !*
दौलत और दहेज़ की खातिर
*पिला दिया जल में विष घोल !*
दुनिया रुपी इस उपवन में,
*छोटी सी एक कली थी मैं !*
जिस को माली समझा,
*उसी के द्वारा छली थी मैं !*
इश्वर से अब न्याय मांगने,
*शव शैय्या पर पड़ी हूँ मैं !*
दहेज़ की लोभी इस संसार मैं,
*दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ में !*
*दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ मैं !!*
.............
अनुरोध हैं !!
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

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