Wednesday, 11 March 2020

काम से प्रसंता

अगर हम स्वेच्छा से कोई काम करते है,तो फिर काम जैसा हो,इसका पूरा आनंद उठाते है।यह काम जब पूरा हो जाता है,तो हमे संपूर्णता का अनुभव होता है।इसी तरह,जब हम काम को बिबस्ता के साथ स्वीकारते है,तो फिर जो भी करें,उसके साथ संघर्ष करना पड़ता है।यह काम जब पूरा हो जाता है,तो चैन की सांस लेते है।दरअसल किसी भी कम को किये जाने के दो रास्ते है।काम जब सामने आए तो मुझे इसे अबश्य करना चाहिए,से हटाकर मैं इसे करना चाहता हूं,पर ले आना चाहिए।यह सच्चाई है कि परसन्तता की ओर जाने का कोई मार्ग नही होता,परसन्तता ही मार्ग है।लेकिन अगर काम आपके मनमाफिक नही हो और उसे करना मजबूरी हो,तब ।इसका उत्तर फ्रेंज काफ्का से सीखें।उन्होंने मज़बूरीबश बीमा कम्पनी में लंबे अरसे तक काम किया,लेकिन अपने मूल काम से नही हटे।काम चाहे जितना अनचाहा हो,आपको कुछ न कुछ देता है।उस देइ को अपने उस काम से जोड़ ले जो आप करना चाहते है।आप पहले से प्रखड हो उठेंगे।

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काम से प्रसंता

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