Wednesday, 11 March 2020

काम से प्रसंता

अगर हम स्वेच्छा से कोई काम करते है,तो फिर काम जैसा हो,इसका पूरा आनंद उठाते है।यह काम जब पूरा हो जाता है,तो हमे संपूर्णता का अनुभव होता है।इसी तरह,जब हम काम को बिबस्ता के साथ स्वीकारते है,तो फिर जो भी करें,उसके साथ संघर्ष करना पड़ता है।यह काम जब पूरा हो जाता है,तो चैन की सांस लेते है।दरअसल किसी भी कम को किये जाने के दो रास्ते है।काम जब सामने आए तो मुझे इसे अबश्य करना चाहिए,से हटाकर मैं इसे करना चाहता हूं,पर ले आना चाहिए।यह सच्चाई है कि परसन्तता की ओर जाने का कोई मार्ग नही होता,परसन्तता ही मार्ग है।लेकिन अगर काम आपके मनमाफिक नही हो और उसे करना मजबूरी हो,तब ।इसका उत्तर फ्रेंज काफ्का से सीखें।उन्होंने मज़बूरीबश बीमा कम्पनी में लंबे अरसे तक काम किया,लेकिन अपने मूल काम से नही हटे।काम चाहे जितना अनचाहा हो,आपको कुछ न कुछ देता है।उस देइ को अपने उस काम से जोड़ ले जो आप करना चाहते है।आप पहले से प्रखड हो उठेंगे।

Sunday, 8 March 2020

मृत्युभोज

सामाजिक मान्यताओं में एक है मृत्युभोज,जब किसी ब्यक्ति की मृत्यु हो जाती है,तो ऐसी मान्यता है कि जब तक सामर्थ्य के हिसाब से लोगो को खाना नही खिलाया जाता तब तक उस ब्यक्ति को मोक्ष प्रदान नही होता है।एक बात समझ मे आती है कि जब किसी परिवार में किसी की मृत्यु हो जाती है।तो यदि समाज  पास परोस के लोग इसी क्रिया कर्म और भोज के बहाने लोगो का आना जाना लगा रहता है।जिस कारण उस परिवार के लोग को मानसिक सम्बल मिलता है।इसी मृत्युभोज के बहाने 12 दिन तक सगे सम्बन्धी कर कुटुम्ब का आना जाना लगा रहता है।जिस कारण वो परिवार इस त्रासदी से उबर जाता है और दैनिक जीवन मे लोग लौट आता है।दुष्परिणाम यह होता है कि लोग की आर्थिक स्थिति पूरी तरह बिगर जाती है।कर्ज की मार उस परिवार पर अचानक बढ़ जाती है।जिससे निबटने में उस परिवार को सालो साल लग जाता है।वह आर्थिक बिपन्तता और सामाजिक उपहास का पात्र बन जाता है।इस प्रकार मृत्युभोज अभिशाप बन गया है।

सुबह

समस्या के बारे में मत सोचिये  सुबह उठते ही यदि आप समस्याओ के बारे में सोचेंगे तो ध्यान किसी ब्ययक्ति या घटनापर जाएगा,जिससे आप भीतर से दुखी हुए है,उससे दिमाग अतीत में चला जायेगा।आप दुखी और निराश हो जाएंगे,खुद को पीड़ित की तरह महसूस करेंगे।आप बर्तमान की जगह अतीत के इंसान रह जाएंगे,इसलिए सुबह की हमेशा शक्तिशाली शुरुआत करें ।सुबह अवसरों,मददगारों और संभावनाओं के बारे में सोचें।बिछावन पर चाय या काफी न लें।सुबह सुबह शरीर मे कार्टिसोल जैसे कई हार्मोन पैदा होते है।जो आपका मूड बनाते है और एनर्जी बढ़आते है।यदि आपने सुबह के वक्त चाय काफी ले ली तो ये हार्मोन ठीक से काम नही करते और इनका प्रभाव कम हो जाता है ।रात भर शरीर मे अमल पैदा होता है।सुबह फिर हम चाय काफी के रूप में शरीर मे और अमल डाल देते है।चाय काफी आठ बजे के बाद लीजिये।सुबह सुबह पहले फल खाइये।शरीर के हार्मोन को काम करने दीजिए।यदि दिन बड़ा करना है तो  सुबह की चाय काफी थोड़ी लेट कर दीजिए।सुबह दिन का सबसे उत्पादक समय माना  जाता है।यदि आपने सुभह का सही उपयोग कर लिया तो आपका हर दिन दो दिनों में बदल सकता है।ऐसा शक्तिशाली दिन पाने के लिए आपको पांच काम छोड़ने होंगे।ये ऐसे काम है जिन्हें कोई भी एचीवर सुबह नही करता।ये काम करने से पता ही नही चलेगा की कब दिन खराब हो जाए।यदि जीवन मे वी आई पी बनना है तो वैसी ही आदते अपनानी होगी।।

नारी

किसी राजा की तरह सोचने की जगह हमेशा एक रानी की माफिक सोचे।रानियां असफल होने से नही डरती क्योंकि वे जानती है कि असफलता महंत की ओर बढ़ रहा एक कदम है।महिलाओं का ब्यक्तित्व टि बैग की तरह होता है।जब तक गर्म पानी मे नही उतरती तब तक पता नही चलता कि वे कितनी मजबूत है।ये बिडंबन्हि किस्त्रियों को प्रेम मिलता है लेकिन उन्हें समझने की कोशिश कोई नही करता।।

Friday, 6 March 2020

मृत्युभोज

सामाजिक मान्यताओं में एक है मृत्युभोज,जब किसी ब्यक्ति की मृत्यु हो जाती है,तो ऐसी मान्यता है कि जब तक सामर्थ्य के हिसाब से लोगो को खाना नही खिलाया जाता तब तक उस ब्यक्ति को मोक्ष प्रदान नही होता है।एक बात समझ मे आती है कि जब किसी परिवार में किसी की मृत्यु हो जाती है।तो यदि समाज  पास परोस के लोग इसी क्रिया कर्म और भोज के बहाने लोगो का आना जाना लगा रहता है।जिस कारण उस परिवार के लोग को मानसिक सम्बल मिलता है।इसी मृत्युभोज के बहाने 12 दिन तक सगे सम्बन्धी कर कुटुम्ब का आना जाना लगा रहता है।जिस कारण वो परिवार इस त्रासदी से उबर जाता है और दैनिक जीवन मे लोग लौट आता है।दुष्परिणाम यह होता है कि लोग की आर्थिक स्थिति पूरी तरह बिगर जाती है।कर्ज की मार उस परिवार पर अचानक बढ़ जाती है।जिससे निबटने में उस परिवार को सालो साल लग जाता है।वह आर्थिक बिपन्तता और सामाजिक उपहास का पात्र बन जाता है।इस प्रकार मृत्युभोज अभिशाप बन गया है।

Wednesday, 4 March 2020

मृत्युभोज

सामाजिक मान्यताओं में एक है मृत्युभोज,जब किसी ब्यक्ति की मृत्यु हो जाती है,तो ऐसी मान्यता है कि जब तक सामर्थ्य के हिसाब से लोगो को खाना नही खिलाया जाता तब तक उस ब्यक्ति को मोक्ष प्रदान नही होता है।एक बात समझ मे आती है कि जब किसी परिवार में किसी की मृत्यु हो जाती है।तो यदि समाज  पास परोस के लोग इसी क्रिया कर्म और भोज के बहाने लोगो का आना जाना लगा रहता है।जिस कारण उस परिवार के लोग को मानसिक सम्बल मिलता है।इसी मृत्युभोज के बहाने 12 दिन तक सगे सम्बन्धी कर कुटुम्ब का आना जाना लगा रहता है।जिस कारण वो परिवार इस त्रासदी से उबर जाता है और दैनिक जीवन मे लोग लौट आता है।दुष्परिणाम यह होता है कि लोग की आर्थिक स्थिति पूरी तरह बिगर जाती है।कर्ज की मार उस परिवार पर अचानक बढ़ जाती है।जिससे निबटने में उस परिवार को सालो साल लग जाता है।वह आर्थिक बिपन्तता और सामाजिक उपहास का पात्र बन जाता है।इस प्रकार मृत्युभोज अभिशाप बन गया है।

पॉजिटिव थिंकिंग की शक्ति

पॉजिटिव थिंकिंग या सकारात्मक सोच में बहुत शक्ति होती है।सोच आपके नजरिया या रबैया कोबदल देती है।सकारात्मक सोच इंसान को ऊंचाई पर ले जाती है वही नकारात्मक सोच इंसान का आत्मबिस्वास कमजोर करती है।हमारे बिचार ही है,जो हमारे एक्शन हमारे कार्यो में परिब्रतीत हो जाते है और हमारी पर्सनालिटी का हिस्सा बन जाते है।उदाहरण के तौर पर बकरियों का झुंड हमेशा की तरह हरे चारे की तलाश मे आस पास की छोटी पहाड़ियों पर जाता था।उनमे से एक नए कहा चलो आज उस ऊपर बाली पहाड़ी पर जाएंगे वहां अछि घास होगी और पानी भी मीठी होगी।सब बकड़िया एकदम उत्साहित हो गयी,और ऊपर की ओर चढ़ने लगी।कुछ देर बाद थकान हो रही है,पाव फिसल रहा है,मुश्किल हो रही है ।यह कहकर बकड़ियों ने हार मानना शुरू किया।उनमे से केवल एक ही थी जो बढ़े चली जा रही थी।ऊपर पहुंच गई।कैसे दोस्तों वह बकड़ी कान से सुनती नही थी।यानी बकड़ी बाहरी थी।पॉजिटिव थिंइकिंग के लाभ दैनिक तनाव कम कर देती है।आप बेहतर स्वास्थ्य प्रप्त कर सकते है।आपसे ज्यादा लोग मित्रता रखेंगे।आप बेहतर निर्णय ले पाएंगे।।।।।।।।।।

काम से प्रसंता

अगर हम स्वेच्छा से कोई काम करते है,तो फिर काम जैसा हो,इसका पूरा आनंद उठाते है।यह काम जब पूरा हो जाता है,तो हमे संपूर्णता का अनुभव होता है।इस...