Tuesday, 3 March 2020

प्रगति और जीवन

परिवर्तन के बिना प्रगति असम्भव है।जो अपने विचारों को नही बदल सकते ,वे किसी चीज को नही बदल सकते।प्रकृति और मन दो ऐसी सत्ताएं है जिनमे हर पलपरिवर्तन होता है।यह परिवर्तन कभी चाहत के अनुकूल होता हैऔर कभी निराश करनेवाला।लेकिन मन दोनों परिस्थितियों में संतुलित रहता है।यह मानकर की हर पल का स्वभाव और रंग अलग अलग होता है इसलिए हर अगले पल उसी तरह जिन चाहिए,जैसे बीते पल को स्वीकार किया था।पतझर पेड़ पौधे और शरीर मे ही नही आतब्ली बिचारो में भी भक्त भक्त पर दिखाई देता है।पतझड़ के बाद बिचारो मेबसन्त आना चाहिए।यह प्रगति का प्रतीक है।प्रगति जीवन का दूसरा नाम है।जहां प्रगति है वहां जीवंतता है।न तो हर पल अंधेरा होने चाहिए न ही उजाला।दोनो का सामंजस्य होना चाहिए।सामंजस्य का जीवन ही सफल और सुखी होता है।बसन्त सामंजस्य वाला ऋतु है इसलिए इसी ऋतुओं में सबसे उत्तम ऋतु कहा जाता है।जिसका जीवन बसंत के समान होता है,उसके जीवन मे कभी हताशा,निराशा,कटुता,अशांति नफरत,और बदरंग नही दिखाई देता है।जॉज बर्नार्ड शो परिर्वतन को प्रगति मानते है।

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