Saturday, 14 October 2017

Dont Wait


प्रतिरोधक क्षमता बचाती हैं करोरों बैक्टीरिया सें

दिनभर के 24 घंटे में ऐसा कोई समय नहीं होता,जब हमारे आसपास बैक्टीरिया नहीं होते । वह हो हमारे शारीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता होती हैं,जो हमें रोजाना करोरों ख़राब बैक्टीरिया से बचाएँ रखती हैं । दिनभर में  हम किन गतिबिधियों के दौरान बैक्टीरिया से सामना करते हैं । कही कम तो कही ज्यादा,लेकिन ऊनि आबादी अच्छी कासी होती हैं । कांस्टेंट नें खाशतौर पर खाने की टेबल,हमारे मोबाइल फ़ोन,कंप्यूटर कीबोर्ड,कार के स्टेरिंग बैठनें की खुर्सी,पिने के पानी की बोअतल जैसे उन चीजों का उलेख किया हैं,जिसका इस्तमाल हम दिनभर में कई बार करते हैं 

कर्म की आदत को बढ़ाबा दें

"कर्मठ' बने । काम कने वाले बनें ।'काम टालने बाला' न बनें ।परिश्स्थ्तियों के आदर्श होनें का इंतजार न करें । वे कभी आदर्श नहीं होंगी । भबिष्य की बाधाओं और कठिनाईयों की उमीद करें और जब वे आयें,तब आप उन्हें सुलझानें का तरीका खोजें ।याद रखे,केबल बिचारों के सफलता नहीं मिलती । बिचारों का मूल्य तभी हैं,जब आप उन  पर अमल करें ।डर भागने और आत्मविश्वास हासिल करने कें लिए कर्म करें । जिस काम से आप डरतें हों,वोह और आपका डरभाग जायेगा ।कोशिश करके देखे ।अपने मानसिक इंजन को मशीनी तरीकें से चालू करें । सही मूड बन्ने का इंतजार न करें । कर्म शुरू कर सें, और आपका मूस अपने आप सही हो जायेगा ।आभी कम शुरू करने के बारे में सोचे । कल,अगले सप्ताह,बढ़ में और इसी तरह के शब्द असफलता के शब्द सभी नहीं के पर्ययाबची हैं व् इस तरह के वयक्ति बनें,'में अभी इस काम को शुरू कर देता हु ।'कार्य में जुट जायें । आर्य की तैयारी में समय बर्बाद न करें । इसके बजाय सीधे काम में लग जायें।पहल करें ।संघर्ष करें । गोद छिनकर गोल की तरफ दौर लगायें ।स्वंयसेवक बनें।यह बताएं की आपमें कर्म करने की योगता और महत्वाकांक्षा हैं  

आपनें दिमाग को गियर में डाल दें और 

सफलता की राह पर चल परें!

आज के समाचार पत्र में छपी खबर।


Friday, 13 October 2017

किस्मत के बहानसाईटिस को दो तरीकों सें जीतें

कारण और परिणाम के नियम को स्वीकार करें ।जब आपको लगे की कोई आदमी खुशकिस्मत है तो जरा गोर से देखे ।तब आपको यह दिखेगा की जिसे आप पहली नज़र में अच्छी किस्मत समझे थे,दरअसल वोह तैयारी,योजना और सफलता के नज़रिया का परिणाम हैं । इसी तरह किसी आदमी की बद्किश्मती को भी गौर से देखे इसके  पीछे भी कुछ कारण मिलेगा । मिस्टर सफल को जब झटका लगता हैं,तो बे उससे कुछ सीखते हैं और उससे लाभ उठाते हैं । परन्तु जब मिस्टर असफल हारते हैं,तोह वे आपनी असफलता से कुछ नहीं सिखतें और बहाने बनाते हैं 
आपनी मानसिक उर्जा को ऐसे सपने देखने में जाया न करे जिसमें  बिना  मेहनत  के सफलता हासिल की जा सकती हैं ।हम किस्मत के सहारें सफल नहीं होते। सफलता उन चीजो को करने से आती हैं और उन सिधान्तों में पारंगत होने से मिलती हैं जो सफलता में सहायक होते हैं । प्रमोशन,जीत,जीवन की अच्छी चीजों में किस्मत का सहारा न ले ।किस्मत से ये चीजों नहीं मिला करती । इसकी बजाय,आपने आपसे ऐसे गुण विकशित करें की आप सचमुच एक विजेता बन जायें 


जिला जनता दल (यू) किसान प्रकोष्ठ मधुबनी द्वारा आयोजित सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती श्रीकृष्णा मेमोरियल हॉल पटना में किसान समारोह आयोजित समेलन की तैयारी की समीक्षा बैठक को संबोधित करते हुए।जिसमे किसान प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष जयबीर सिंह कुशवाहा,जिला जनता दल( यू ) अध्यक्ष कयूम अंसारी एवं दरभंगा जिला जनता दल (यू) के नबीन सिंह उपस्थित थे।

















Wednesday, 11 October 2017

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

*एक कवि* नदी के किनारे खड़ा था !
तभी वहाँ से *एक लड़की* का *शव*
नदी में तैरता हुआ जा रहा था।
तो तभी *कवि ने उस शव* से पूछा ----
कौन हो तुम ओ सुकुमारी,
*बह रही नदियां के जल में ?*
कोई तो होगा तेरा अपना,
*मानव निर्मित इस भू-तल में !*
किस घर की तुम बेटी हो,
*किस क्यारी की कली हो तुम ?*
किसने तुमको छला है बोलो,
*क्यों दुनिया छोड़ चली हो तुम ?*
किसके नाम की मेंहदी बोलो,
*हांथों पर रची है तेरे ?*
बोलो किसके नाम की बिंदिया,
*मांथे पर लगी है तेरे ?*
लगती हो तुम राजकुमारी,
*या देव लोक से आई हो ?*
उपमा रहित ये रूप तुम्हारा,
*ये रूप कहाँ से लायी हो?*
..........
*दूसरा दृश्य----*
*कवि* की बातें सुनकर
*लड़की की आत्मा* बोलती है...
कविराज मुझ को क्षमा करो,
*गरीब पिता की बेटी हूं !*
इसलिये मृत मीन की भांती,
*जल धारा पर लेटी हुँ !*
रूप रंग और सुन्दरता ही,
*मेरी पहचान बताते है !*
कंगन, चूड़ी, बिंदी, मेंहदी,
*सुहागन मुझे बनाते है !*
पिता के सुख को सुख समझा,
*पिता के दुख में दुखी थी मैं !*
जीवन के इस तन्हा पथ पर,
*पति के संग चली थी मैं !*
पति को मेने दीपक समझा,
*उसकी लौ में जली थी मैं !*
माता-पिता का साथ छोड़
*उसके रंग में ढली थी मैं !*
पर वो निकला सौदागर,
*लगा दिया मेरा भी मोल !*
दौलत और दहेज़ की खातिर
*पिला दिया जल में विष घोल !*
दुनिया रुपी इस उपवन में,
*छोटी सी एक कली थी मैं !*
जिस को माली समझा,
*उसी के द्वारा छली थी मैं !*
इश्वर से अब न्याय मांगने,
*शव शैय्या पर पड़ी हूँ मैं !*
दहेज़ की लोभी इस संसार मैं,
*दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ में !*
*दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ मैं !!*
.............
अनुरोध हैं !!
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

काम से प्रसंता

अगर हम स्वेच्छा से कोई काम करते है,तो फिर काम जैसा हो,इसका पूरा आनंद उठाते है।यह काम जब पूरा हो जाता है,तो हमे संपूर्णता का अनुभव होता है।इस...